राजाओं का स्थान कहे जाने वाले राजस्थान में अनेकों प्राचीन इमारत, किले और बनावट हैं। लोगों की माने तो इन प्राचीन इमारतों और किले में से बहुत से ऐसे है जिनमें आज भी आत्माएं वास करती है। आपको इस लेख में Bhangarh Fort Story in Hindi पढ़ने को मिलेगी। ये भानगढ़ का किला भी कुछ ऐसे ही किलों में से एक है, जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है की किले की आत्माएं यहाँ पर पर्यटकों से संवाद करती है। तो चलिए जानते है भानगढ़ के इस अद्भुत किले के बारे में।
Bhangarh Fort Story in Hindi
हमने नीचे भानगढ़ किले से जुड़ी तीन ऐसी कहानियों के बारे में लिखा है, जिन्हें कई लोग सच मानते हैं।
राजकुमारी रत्नावती और एक तांत्रिक
एक प्राचीन कहानी के अनुसार, भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत सुन्दर और आकर्षक थी। उनकी सुंदरता को देख एक तांत्रिक राजकुमारी पर मोहित हो गया और उनसे प्यार करने लगा।
हालाँकि ये बात उस तांत्रिक ने राजकुमारी को नहीं बताई। उस तांत्रिक ने राजकुमारी को अपने जादू से अपने वश में करने की सोची। अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए वह तांत्रिक उस व्यपारी की दुकान पर गया जहाँ से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था।
जिस इत्र की शीशी को राजकुमारी के लिए तैयार करके रखा गया था, तांत्रिक ने उस इत्र की शीशी पर काला जादू कर दिया। जब वह इत्र की शीशी राजकुमारी रत्नावती के पास पहुंची तो वह शीशी अचानक नीचे गिरकर एक पत्थर से टकराकर चूर-चूर हो गई और सारा जादुई इत्र उस पत्थर पर बिखर गया।
उस तांत्रिक ने इत्र पर ऐसा जादू किया हुआ था की जो भी उसे लगाए गा वह उस तांत्रिक से प्यार करने लगेगा। इस जादू की वजह से जिस पत्थर पर इत्र गिरा था वह पत्थर उस तांत्रिक की ओर चल दिया।
उस पत्थर ने तांत्रिक को उसके जादू के कारण कुचल दिया। लेकिन कुचल कर मारे जाने से पहले तांत्रिक ने भानगढ़ को विनाश का श्राप दे दिया। इस श्राप के कुछ समय बाद एक भयानक युद्ध हुआ जिमसें भानगढ़ का विनाश हो गया और भानगढ़ किले में रहने वाले लोग मारे गए।
किले की परछाई और तपस्वी का क्रोध
कई लोगों का ऐसा कहना है की जिस जमीन पर भानगढ़ किला बना है वह जमीन किला बनने से पहले एक शक्तिशाली तपस्वी बालूनाथ की थी। भानगढ़ के किले का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले माधो सिंह ने उस तपस्वी से आज्ञा मांगी थी।
गुरु बालूनाथ ने उन्हें एक शर्त पर किला बनाने की अनुमति दी और वह शर्त यह थी कि किले की छाया कभी भी उनके घर पर नहीं पड़नी चाहिए अन्यथा उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है।
समय के साथ उनके इस शर्त को भी भुला या यु कहे की अनदेखा कर दिया गया और मजबूत दीवारों के साथ किला बनवाया गया। और जो नहीं होना चाहिए था वही हुआ। उस नए बने भानगढ़ के किले की परछाई तपस्वी बालूनाथ के घर पर पड़नी शुरू हो गई।
इस बात से क्रोधित हो कर उस तपस्वी ने भानगढ़ को श्राप दे दिया। जिसकी वजह से भानगढ़ का किला और उसके आसपास के क्षेत्र बर्बाद हो गया।
भानगढ़ का किला और पानी
बहुत से लोगों के मुताबिक भानगढ़ के किले की बर्बादी के पीछे का कारण पानी की कमी है। साल 1720 के दौरान यह जगह उजड़ने लगी थी क्योंकि यहाँ पर पानी की भरी कमी होने लगी थी।
साल 1783 के दौरान आए एक अकाल ने भानगढ़ किले की हालत और ज्यादा खराब कर दी। इस अकाल ने यहाँ के रिहाइश को ख़तम कर दिया और भानगढ़ पूरी तरह से उजाड़ गया।
Bhangarh Fort Haunted Story
सोलहवीं शताब्दी में बने भानगढ़ किले से कई कहानियां जुड़ी हुई है। ये कहानियां वहां के आम लोगों के बीच बहुत प्रचलित है।
भानगढ़ किले में घूम कर वापस आने वाले लोग भी अपने अजीबो-गरीब अनुभवों को अन्य लोगों के साथ साझा करते है। जिसकी वजह से ऐसा लगता है, मानो ये कहानियां किसी समय सच रही होंगी।
भानगढ़ किले की एक खास बात ये है की यहाँ के घरों के ऊपर छत नहीं है। जो हमें इस 400 साल से भी ज्यादा पुराने किले की साथ हुई घटनाओं के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है।
भानगढ़ किले से परिचित हुए कुछ लोगों की आप बीती भी रूह कपा देने वाली है। उनका कहना है की घरों की दीवारों पर अगर कान लगाकर सुने तो भूतिया आवाज़े सुनाई देती है। मनो जैसे की आपसे कोई कुछ राज की बात कह रहा हो।
इसके आलावा भानगढ़ किले के श्रापित होने की कहानियों ने इसे और रहस्यमय बना दिया है। कई लोगों का तो ऐसा भी कहना है की कुछ लोग शाम को इस हॉन्टेड किले के घूमने के लिए अंदर तो गए लेकिन आज तक वापस लौटकर नहीं आए।
वही कुछ लोगों का ऐसा कहना है की भानगढ़ के किले से औरतों के चिल्लाने, लोगों के रोने की आवाज़े और चूड़ियां टूटने की आवाज़े भी सुनाई देती है।
किले को घूम कर आए कुछ लोगों का तो ये भी कहना है की, “उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनका पीछा कर रहा हो।” अन्य लोगों के साथ भी ऐसी कई घटनाएं हुई है, जिससे हमे भानगढ़ किले के हॉन्टेड होने का पता चलता है।
Bhangarh Fort History
एक समय ऐसा भी था जब भानगढ़ फल-फूल रहा था। अपने समय में भानगढ़ किला सुंदरता और शक्ति का प्रतिक था। ऐसा कहा जाता है की भानगढ़ के उजड़ने से पहले लगभग दस हज़ार लोग भानगढ़ में रहते थे।
पत्थरों और ईंटों से बना भानगढ़ किले का निर्माण अब से लगभग 450 साल पहले 1573 के आसपास करवाया गया था। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने अपने पुत्र माधो सिंह के लिए बनवाया था।
भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। यह किला अरावली पर्वत श्रृंखला के पहाड़ों से घिरा हुआ है।
निष्कर्ष (Conclusion)
लगभग 450 साल पहले का बना भानगढ़ का किला अपने अंदर कई राज़ समेटे हुए है। लोगों की कथाओं की माने तो ये किला श्रापित है। इस किले से कई कहानियां जुडी हुई है।
जिसपर बहुत से लोग भरोसा करते है और वे सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद इस भूतिया किले के आसपास भी नहीं भटकते।
अगर आज के जमाने की बात करे तो जो लोग इस किले में घूम कर आए है, उनके अनुभव इस किले को लेकर अलग-अलग है।
कुछ लोगों को तो ये किला बिलकुल भूतिया नहीं लगा और उन्होंने किले में ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं किया जिससे उन्हें डर लग सके।
वही पर कुछ लोग अपने साथ हुई अजीबो-गरीब घटनाओं और अनुभवों को अन्य लोगो को बताते है। जिनपर आसानी से भरोसा करना मुश्किल है। इस लेख को पढ़ने के बाद भानगढ़ किले को लेकर आपके क्या विचार है।
अपने विचार हमारे साथ कमेंट करके शेयर जरूर करें। और इस लेख को भी ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि अन्य लोगों को भी भानगढ़ के किले के बारे में पता चल सके।
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FAQ (Frequently Asked Questions)
भानगढ़ किले की एंट्री फीस कितनी है?
भानगढ़ किले की एंट्री फीस भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए अलग-अलग है। भारतीय नागरिकों के लिए भानगढ़ किले की एंट्री फीस 40 रूपए है और विदेशी नागरिकों के लिए 200 रूपए हैं।
भानगढ़ किले में घूमने के लिए एंट्री टाइम क्या है?
आप भानगढ़ किले में सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे के बीच घूमने के लिए कभी भी जा सकते हैं।
क्या भानगढ़ के किले में रात में रुक सकते है?
भानगढ़ किले में सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद जाने पर प्रतिबंध है। इसलिए नियमों का पालन करते हुए आपको रात में भानगढ़ किले में रुकने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसका मतलब आप भानगढ़ किले में रात को नहीं रुक सकते।
भानगढ़ किला कैसे पहुंचे?
भानगढ़ किले तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको राजस्थान के अलवर (जिला) शहर में आना होगा। अलवर पहुंचने के लिए आपको कई सार्वजनिक वाहन मिल जाएंगे। अगर आप दिल्ली से आना चाहते हैं तो यह किला आपको एनएच 48 के जरिए करीब 284 किलोमीटर दूर मिलेगा।