सिद्धार्थ गौतम जन्म से एक राजकुमार थे। जिनका दुःख, दर्द, बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, इत्यादि जैसी चीज़ों से कभी कोई सामना नहीं हुआ था। लेकिन एक बार जब वे किसी तरह लोगों से छिपकर अपने महल से बाहर घूमने के लिए आए तो उन्होंने जीवन की वे वास्तविक सच्चाई देखि, जो उनसे अभी तक छुपाई गई थी। जब उन्होंने देखा की जीवन दुःख, दर्द और पीड़ा से भरा हुआ है तो उनके मन में अनेक तरह के सवालों ने जन्म लेना शुरू कर दिया। इस लेख में Gautam Buddha biography in Hindi पढ़कर आप बुद्ध के जीवन के बारे में जान पाएंगे। इसके अलावा आपको ये भी पता चलेगा की सिद्धार्थ गौतम गौतम बुद्ध कैसे बने और बौद्ध धर्म की स्थापना कैसे हुई।
Gautam Buddha Biography in Hindi
गौतम बुद्ध ने बताया की जीवन दुःख और कष्ट से भरा हुआ है। और इसका कारण हमारी लालसाएँ और इच्छाएँ है। गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से इस कष्ट और दुःख से बाहर निकलने का रास्ता बताया है।
गौतम बुद्ध की जीवनी के जरिये हम उनके और उनके द्वारा बताई गई शिक्षाओं के बारे में जानेंगे। तो आइये सबसे पहले शुरुआत करते हैं उनके जन्म से।
एक महान जन्म: बौद्ध परंपरा के अनुसार सिद्धार्थ गौतम का जन्म शाक्य वंश में लुम्बिनी में हुआ था। जो की वर्तमान में नेपाल में है। उनके पिताजी शुद्धोधन शाक्य राष्ट्र के एक क्षत्रिय राजा थे और उनकी माताजी का नाम रानी माया (मायादेवी) था, जो राजा शुद्धोधन की पत्नी थीं।
दंतकथाओं के अनुसार जिस रात मायादेवी ने सिद्धार्थ को अपने गर्व में धारण किया, उस रात मायादेवी ने सपना देखा कि छह सफेद दांतों वाला एक सफेद हाथी उनके दाहिनी ओर से उनमे प्रवेश कर गया है। इस सपने के लगभग दस महीने बाद सिद्धार्थ का जन्म हुआ।
जब सिद्धार्थ के जन्म होने का उत्सव मनाया जा रहा था, तब उत्सव के दौरान असिता नाम के एक तपस्वी द्रष्टा ने ये घोषणा की कि या तो ये बच्चा एक चक्रवर्ती राजा बनेगा या फिर एक महान सन्यासी (तपस्वी) बनेगा।
परंपरागत कथाओं के अनुसार सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद उनकी माताजी रानी मायादेवी का निधन हो गया था।
रानी मायादेवी के निधन के बाद सिद्धार्थ का पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्धोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती गौतमी ने किया।
उस नवजात शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ का अर्थ होता है “वह जो सिद्धि प्राप्त करने के लिए पैदा हुआ हो“।
सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन की इक्छा थी की वे एक चक्रवर्ती राजा बने। इसी वजह से शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को दुःख, दर्द, बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, धार्मिक शिक्षाओं और मानवीय पीड़ाओं के ज्ञान से बचाने के लिए बहुत कुछ किया।
जन्म के बाद का जीवन: जब सिद्धार्थ गौतम 16 साल के हुए तो उनके पिताजी ने उनकी शादी उन्ही के उम्र की एक सुन्दर राजकुमारी से करवा दी। सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा एक ऊँचे कुल की कन्या थी।
शादी के कुछ समय बाद यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया। सिद्धार्थ गौतम ने एक राजकुमार के तौर पर 29 साल कपिलवस्तु (वर्तमान में नेपाल में एक जगह) में व्यतीत किए।
सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को कभी भी किसी भौतिक सुख-सुविधा की कमी महसूस नहीं होने दी। सिद्धार्थ के पास हर वो चीज़ थी जो उन्हें चाहिए थी या उसकी उन्हें आवश्यकता थी।
तमाम सुख-सुविधाएं होने के बावजूद वह कभी संतुष्ट नहीं हो सके और उन्हें एहसास हुआ कि भौतिक सुख-सुविधाएं कभी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकतीं।
सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध की यात्रा
राजकुमार सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बनने की यात्रा को मोटे तौर पर तीन चरणों में विभाजित किया गया है – महान प्रस्थान (the great departure), महान ज्ञानोदय (the great enlightenment), और महान निधन (the great Demise)।
महान प्रस्थान (the great departure)
सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन चाहते थे की सिद्धार्थ बड़े होने के दौरान सिर्फ विलासिता के जीवन का अनुभव करें। और इसके अलावा वे कुछ ऐसा न देखे या सुने जिससे की वे आध्यात्मिक पथ पर जाने के लिए प्रेरित हो जाए।
लेकिन अंततः वे किसी तरह अपने 29वे साल में महल के पहरेदारों से छिपकर महल के बाहर निकल आये। महल से बाहर आकर उन्होंने बाहरी दुनिया में जीवन बदलने वाले वे चार संकेत देखे जिसके देखने के बाद उनके जीवन का मार्ग बदल गया।
- एक बीमार आदमी
- एक बूढ़ा आदमी
- एक धार्मिक तपस्वी
- एक मरा हुआ आदमी
इन संकेतों को देखने के बाद सिद्धार्थ को एहसास हुआ की वे भी एक दिन बीमार होंगे, बूढ़े होंगे और मर जाएंगे और वे सब कुछ खो देंगे जिससे वे प्यार करते है।
वे समझ गए की, जिस तरह का जीवन वे जी रहे है उसमे सिर्फ दुःख और पीड़ा है। इन सब संकेतों और नए अनुभवों को देखकर सिद्धार्थ परेशान और बेचैन हो गए।
वे जो जीवन जी रहे थे, उसकी वास्तविकता को देखने के बाद उन्होंने सत्य और जीवन क्या है? या जीवन का उद्देश्य क्या है? जैसे सवालों के जवाब पाने के लिए अपने विलासिता भरे जीवन, पत्नी, बेटे, और परिवार को 29 की उम्र में त्याग दिया।
सिद्धार्थ अपने पसंदीदा घोड़े कंथका (Kanthaka) के ऊपर बैठ, महल को छोड़ कर चले गए। उन्होंने दो साधुओं के साथ अपनी ध्यान साधना शुरू की जिसके बदौलत उन्होंने उच्च स्तर की ध्यान चेतन हासिल की। लेकिन वे इससे भी संतुष्ट नहीं थे।
जब वे एक स्तर पर पहुंच गए तब उन्होंने एक तपस्वी के तौर पर अपना जीवन जीना शुरू कर दिया और उन्होंने शारीरिक और मानसिक तपस्या की जोरदार तकनीकों का अभ्यास किया।
गौतम ने इन सभी तकनीकों और ज्ञान को बहुत अच्छी तरह से सीखा और उनमें निपुण हो गए और अपने गुरुओं से भी आगे निकल गए।
चेतना और तपस्या के इतने उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद भी उन्हें अपने सवालों के जवाब (जैसे की दुःख और पीड़ा से मुक्ति कैसे मिलेगी) नहीं मिले।
इसके बाद वे अपने गुरुओं को छोड़ अपने कुछ करीबी साथियों के साथ अपनी तपस्या को और भी आगे बढ़ाने के लिए निकल पड़े।
महान ज्ञानोदय (The great enlightenment)
अंततः वे गया (एक जगह जो की वर्तमान में बिहार में स्थित है) पहुँच गए और एक बोधि वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करने लगे।
एक वक़्त ऐसा आया जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्हें समझ में आया कि कोई भी मनुष्य पीड़ा में इसलिए होता है, क्योंकि वह इतने जागरूक नहीं है की ये समझ सकें की इस नश्वरता की दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है और जीवन लगातार बदलता रहता है।
और हर भौतिक वास्तु का अंत होता है इसलिए किसी भी चीज़ से आसक्ति करना उनके लिए दुःख और पीड़ा का कारण बन सकता है। जो उन्हें इच्छा, प्रयास, पुनर्जन्म और मृत्यु के कभी न खत्म होने वाले चक्र में फंसाए रखेगी।
ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ गौतम, गौतम बुद्ध बन गए। ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने अन्य लोगों को अज्ञानता और इक्छा से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग और लोगों की पीड़ा को समाप्त करने में लग गए।
उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। जहा पर उन्होंने अपने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग से लोगों का परिचय कराया। उनके द्वारा बताए गए चार आर्य सत्य हैं:
- जीवन कष्टमय है
- दुःख का कारण तृष्णा (यानी इच्छा) है
- दुख का अंत तृष्णा के अंत के साथ होता है
- एक रास्ता है जो व्यक्ति को लालसा और पीड़ा से दूर ले जाता है
चौथा आर्य सत्य हमें अष्टांगिक मार्ग की और निर्देशित करता है, जो हमें आसक्ति रहित जीवन जीने की राह दिखाता है। वे आठ अष्टांगिक मार्ग हैं:
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाणी
- सम्यक कर्मात
- सम्यक आजीविका
- सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधि
महान निधन (The great Demise)
पाली कैनन के महापरिनिब्बान सुत्त के अनुसार जब बुद्ध 80 वर्ष थे तब उन्होंने ये घोषणा की कि वे जल्द ही परिनिर्वाण यानी सांसारिक शरीर को त्यागकर अंतिम मृत्युहीन अवस्था में प्रवेश करेंगे। बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुसीनारा में हुई थी।
बुद्ध ने जब अपने शरीर को पूरी तरह से त्याग दिया यानि उनके शरीर की मृत्यु होने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनके अवशेषों को स्मारकों या स्तूपों में रखा गया। उनके कुछ अवशेषों के बारे में ऐसा माना जाता है कि वे आज तक जीवित हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
सिद्धार्थ गौतम का जन्म लुम्बिनी में हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन और उनकी माता का नाम मायादेवी था। सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद उनकी माता की मृत्यु हो गई था और सिद्धार्थ का पालन-पोषण शुद्धोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती गौतमी ने किया।
सिद्धार्थ ने 29 की उम्र में अपने महल, पत्नी, बेटे, परिवार, आदि सभी का त्याग करके सत्य की तलाश में अपने घोड़े कंथका के ऊपर बैठकर चले गए।
उन्होंने अपने जीवन में बहुत ही कड़ी तपस्या और साधना करी जिसकी वजह से उनकी मानसिक चेतना बहुत ही उच्च स्तर पर चली गई। उनको ज्ञान की प्राप्ति गया के बोधि वृक्ष के नीचे हुए जब वे अपनी साधना (तपस्या) में लीन थे।
ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद उन्होंने अन्य लोगों को उपदेश देना शुरू किया की कैसे वे लोग अपने कष्टों से मुक्त हो पाएंगे। उन्होंने अपने शरीर को 80 वर्ष की आयु में त्याग दिया।
गौतम बुद्ध अपने अमूल्य ज्ञान को अपने शिष्यों के बीच छोड़ गए। हम आशा करते है की गौतम बुद्ध और उनके द्वारा बताए गए मार्गों के बारे में पढ़कर आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव आए।
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FAQ (Frequently Asked Questions)
Why did Siddhartha Gautama abandon his luxurious life?
When Siddhartha Gautama became 29 years old. Somehow he came out of the palace hiding from the palace guards. Coming out of the palace, he saw four life-changing signs. They are a sick man, an old man, a religious ascetic, and a dead man.
After seeing these signs Siddhartha realized that one day he too would fall ill, grow old, and die and he would lose everything he loved. They understood that the kind of life they were living contained only sorrow and pain.
After seeing the reality of the life he was living, he asked what is truth and life. Or what is the purpose of life? To find answers to such questions, Siddhartha Gautama abandoned his luxurious life, wife, son, and family at the age of 29.
गौतम बुद्ध का असली नाम क्या है?
गौतम बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ गौतम है और सिद्धार्थ का मतलब है “वह जो सिद्धि प्राप्त करने के लिए जन्मा हो“।
क्या गौतम बुद्ध हिंदू थे?
हाँ गौतम बुद्ध एक हिंदू थे। उनका जन्म उत्तरी भारत में एक हिंदू परिवार में हुआ था।