दोस्तों आज भी हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी गांव में बस्ती हैं। हमारे देश में कई गांव तो ऐसे हैं जिनसे कई कहानियां जुडी हैं जो की रोमांच, रहस्य से लेकर भूतो और अलौकिक कथाओं से भरी हुई हैं। ऐसा ही एक गांव हमारे देश के गोल्डन सिटी कहे जाने वाले जैसलमेर में हैं। जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर दूर कुलधरा गांव हैं। इस गांव के खाली होने से जुडी कई रोचक और रहस्यमई कथाएं हैं। तो चलिए सबसे पहले जानते हैं Kuldhara village story के बारे में।
कुलधरा गांव की कहानी (Kuldhara Village Story)
ऐसा माना जाता हैं की एक समय में जैसलमेर के कुलधरा गांव में लगभग 1500 पालीवाल ब्राह्मण प्रेम और शान्ति से रहते थे। लेकिन एक रात वो सभी उस गांव को छोड़ के चले गए और उस रात के काले अंधेरे में कही गायब हो गए।
आजतक भी लोग नहीं जान पाए हैं की वो सभी पालीवाल ब्राह्मण कहाँ और क्यों चले गए। उनके कुलधरा विलेज को छोड़ने के पीछे कई कहानियां और अफवाहें हैं।
एक अफवाहें अनुसार उस समय के जैसलमेर के मंत्री सलीम सिंह अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। सलीम सिंह अपनी प्रजा से बहुत ज्यादा कर वसूलता था। एक बार की बात हैं जब सलीम सिंह की बुरी नजर पालीवाल ब्राह्मणों के समुदायें के मुखिया की पुत्री पर पड़ी।
सलीम सिंह ने मुखिया की पुत्री से जबर्दस्ती शादी करने की बात उन लोगो के सामने कही। इसके इलावा सलीम सिंह ने ये भी कह दिया की अगर ये शादी उन्होंने नहीं करवाई तो उन्हें इसका बुरा अंजाम भुकतना पड़ेगा।
सलीम सिंह की बात मानने की वजाये उन्होंने उससे सोचने-विचारने के लिए थोड़ा समय मांग लिया। पालीवाल ब्राह्मणों ने क्रूर मंत्री के सामने झुकने के वजाये उस जगह को छोड़ने का निर्णय लिया।
फिर पालीवाल ब्राह्मणों के निर्णय के अनुसार 85 गांव के लोगो ने अपने पैतृक गांव को छोड़ के कही गायब हो गए। जाने से पहले उन्होंने उस गांव को श्राप दिया की अब यहाँ कोई ओर कभी नहीं रह पायेगा।
एक दूसरी अफवाह के अनुसार लोगो का कहना हैं की सलीम सिंह ने कर की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ा दी थी। जिसकी वजह से उन लोगो का जीना और भी मुश्किल हो गया।
इन सब चीज़ो को देखते हुए उन लोगो ने उस जगह को छोड़ दिया और किसी दूसरी जगह पर चले गए। जहां वो उस क्रूर सलीम सिंह से बच सके और अपना जीवन यापन आराम से कर सके।
कुलधरा गांव का इतिहास (Kuldhara Village History)
कुलधरा विलेज के बारे में लक्ष्मी चंद के द्वारा 1899 में लिखी इतिहास के किताब तारीखे-ए-जैसलमेर से जान सकते हैं। इस किताब के अनुसार कधन (kadhan) वे पहला पालीवाल ब्राह्मण था जो की कुलधरा गांव में आया। उसने गांव में एक तालाब भी खोदी जिसका नाम उधानसर (udhansar) हैं।
वास्तव में कुलधरा गांव ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया। वे पाली छेत्र से जैसलमेर को आये थे और पाली छेत्र से आने की वज़ह से इनको पालीवाल ब्राह्मण कहा जाने लगा। कुलधरा गांव के शिलालेखों की जाँच पड़ताल से ये पता चला हैं की ये गांव 13 वीं शदी की शुरुआत में बसा होगा।
कुलधरा के खंडहरों से बाद में और भी नक्काशी और शिलालेख मिले जिनका अध्यन करने से पता चला की बहुत से शिलालेखों पर कुलधरा को उन ब्राह्मणों की जाती बताई गई हैं। शायद इसी वज़ह से इस गांव का नाम कुलधरा पड़ा होगा।
Kuldhara Village Temple and the Sixty Steps
कुलधरा सिर्फ अपने त्यागे हुए घरों और वास्तुकला के वज़ह से ही नहीं बल्कि गांव के किनारे पर बने एक प्राचीन मंदिर की वज़ह से भी जाना जाता हैं। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं और ऐसा कहा जाता हैं की ये प्राचीन मंदिर 13 वीं या 14 वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था।
एक समय ऐसा भी था जब यह स्थान आस्था और धर्म का केंद्र था। लेकिन आज के समय में ये गांव ऐसा वीरान हो गया हैं मानो जैसे कभी यहाँ इंसान रहते ही ना हो।
कभी इस प्राचीन मंदिर की वास्तुकला बहुत शानदार रही होगी। लेकिन बीतते समय के साथ-साथ इस मंदिर की वास्तुकला और सुंदरता भी खराब होने लगी। इन सब चीज़ों के बावजूद भी इस मंदिर में बानी वो सीढ़ियां जो धरती की गहराई की ओर ले जाती हैं, आज भी वहां पर जाने वाले लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं।
इन सीढ़ियों को “साठ कदम (Sixty Steps)” के नाम से जाना जाता हैं और ऐसा कहा जाता हैं की ये सीढ़ियां पाताल लोक को जाती हैं।
स्थानीय लोगो के अनुसार ये सीढ़ियां पालीवाल ब्राह्मणों के द्वारा बनवाई गई थी जो की मंदिर से धरती की गहराईयों की तरफ जाती थी। लोगो का कहना हैं की, उन्होंने ये सीढ़ियां अपने पूर्वजो से बातचीत करने और उनका मार्गदर्शन के साथ-साथ आशीर्वाद लेने के लिए बनाई थी।
आज बहुत से पर्यटक कुलधरा गांव में आते हैं और इस मंदिर के निचे बने उस कमरे में उन साठ सीढ़ियों से निचे उतरकर जाते हैं। वो लोग इस कमरे में आने के बाद बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग हो जाते हैं।
यहाँ आने के बाद लोग शांत और अलौकिक माहौल का अनुभव करते हैं। इसके इलावा उस कमरे में दिवालो पर बहुत सी नक्काशी की गई हैं जो की पालीवाल के ब्राह्मणों की पौराणिक कथाओं को दर्शाता हैं।
कुलधरा गांव की डरावनी कहानी (Kuldhara Village Haunted Story)
लोगो का मानना हैं की गांव को छोड़ने से पहले पालीवाल ब्राह्मणों ने श्राप दिया था की ये गांव अब कभी दुबारा नहीं बस पायेगा।
बहुत से लोग वहाँ रात को रहने के लिए गए लेकिन असाधारण घटनाओ की वज़ह से वहाँ रुक नहीं पाए। इसी वजह से अभी तक कुलधरा गांव के खंडहारों में रात को बहुत कम लोग जाने की हिम्मत करते हैं।
कुलधरा गांव के हॉन्टेड होने की कहानी की वज़ह से बहुत से पर्यटक और पैरानॉर्मल गतिविधियों के जांचकर्ता यहाँ पर आते हैं।
यहाँ पर आये लोगो का कहना हैं की उन्होंने अजीब परछाईया और आत्माओ को बात करते हुए सुना हैं। इसके इलावा उन्होंने यहाँ पर रूह कपा देने वाली डरावनी आवाजे भी सुनी हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
दोस्तों Kuldhara village story से जुडी अफवाहों का कोई भी प्रमाण नहीं मिला हैं। पालीवाल ब्राह्मणों के कुलधरा गांव से गायब होने का सही कारण भी लोगो को नहीं पता हैं। लेकिन उनके द्वारा दिए गए श्राप को बहुत से लोग सच मानते हैं। क्योंकि जो भी वहाँ गया हैं उसने कुछ पारलौकिक ही महसूस किया हैं जिसकी वज़ह से वो वहाँ नहीं रुक पाए।
जो लोग अपने जीवन में कुछ नया और दिव्य महसूस करना चाहते हैं, वो एक बार कुलधरा गांव के किनारे बने मंदिर के साठ सीढ़ियों से निचे उतरकर उस कमरे में जरूर जाये। उस कमरे में आपको एक अलग लोक का अनुभव होगा।
FAQ (Questions about Kuldhara Village)
क्या हम कुलधरा रात को जा सकते हैं?
नहीं, हम कुलधरा रात को नहीं जा सकते क्योंकि वहाँ के आम लोगो का मानना हैं की वह जगह हॉन्टेड हैं। इसलिए वो सूरज ढलने के बाद दरवाजे बंद कर देते हैं।
कुलधरा विलेज जाने का समय और शुल्क क्या हैं?
कुलधरा विलेज हर दिन सुबह 8 बजे से लेकर शाम को 6 बजे तक खुला रहता हैं। कुलधरा विलेज में जाने का शुल्क प्रति व्यक्ति 10 रूपए हैं और यदि आप अपने वाहन जैसे कार से जायेंगे तो 50 रूपए हैं।
कुलधरा विलेज कैसे जाये?
कुलधरा विलेज गोल्डन सिटी जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर दूर हैं। तो आप जब भी जैसलमेर पहुँचे वहाँ से आप एक वाहन कुलधरा विलेज के लिए किराये पर ले सकते हैं और आप कुलधरा गांव तक आराम से जा सकते हैं।
कुलधरा विलेज साल के किस महीने में जाना चाहिए?
राजस्थान में लगभग 6 महीने गर्मी रहती हैं जिसकी वजह से कुलधरा विलेज जाने का सबसे सही समय अक्टूबर से मार्च तक का हैं। क्योंकि इस समय गर्मी कम रहती हैं और आप आसानी से यहाँ घूम सकते हैं।